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ज़ाहिद(जावेद)खान।
गोंदिया। पिछले अनेक वर्षों से कर्मठ रूप से अपनी भागीदारी निभाकर अपनी पार्टियों के लिए जी-जान से प्रयास कर रहे पक्ष के कार्यकर्ताओं को जब इसका फल देने का अवसर आया तो, राजनीतिक दलों ने वर्षों की मेहनत का सिला बेवफाई से दिया। अब ये कार्यकर्ता अपनी ही पार्टियों से सवाल पूछ रहे है, “मेरा क्या कसूर”.?
गोंदिया शहर में नगर परिषद का चुनाव चल रहा है। आगामी 2 दिसंबर को मतदान होना है। जबसे चुनाव घोषित हुए है सोशल मीडिया, अखबारों पर चर्चित रूप से प्रबल दावेदारी में आगे रहकर खुद को नगरसेवक या नगराध्यक्ष प्रत्याशी के रूप में फेस करने वाले कर्मठ कार्यकर्ताओं की एकदम से दगाबाजी कर टिकट काट देने और अन्य को दे देने से कार्यकर्ताओं की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है। जिनका नाम तक सामने नही था, ऐसे लोग आज राजनीतिक दलों के प्रत्याशी है। ऐसे में वे कर्मठ लोग अपने दलों से नाराज और बागी बनकर सवाल पूछ रहे है कि, उनका क्या कसूर.?
“मेरा क्या कसूर” टाइटल सोशल मीडिया पर सर्वाधिक चर्चित स्लोगन बन गया है। जो भी राजनीतिक दलों से टिकट नहीं मिलने पर नाराज है, वो स्वतंत्र या अन्य राजनीतिक दलों से टिकट लेकर चुनाव लड़ रहा है। और नीचे लिख रहा है मेरा क्या कसूर।
ये डायलॉग “मेरा क्या कसूर’ 2019 के विधानसभा चुनाव में खूब हिट हुआ था। उस समय भी कुछ ऐसा हुआ था जब नाराज प्रत्याशी ने टिकट न मिलने पर स्वतंत्र लड़कर टिकट वाले प्रत्याशी को हराया था। जो पक्ष के लिए जी जान से काम करता है, जब उसे टिकट नही मिलती तो जनता भावुकता से उसके साथ हमदर्दी दिखाती है ये हम पिछले चुनाव में देख चुके है। अब वर्तमान चुनाव में वही डॉयलॉग नाराज कार्यकर्ता लिखकर अपनी नाराजगी दिखा रहे है।
कहने का मतलब यहीं है कि वो नाराजगी कहीं पक्ष के लिए घातक न बन जाये। चूंकि नाराज कार्यकर्ता या तो बागी बनकर निर्दलीय प्रत्याशी है या फिर दूसरे दलों से चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में नुकसान उन दलों का होना तय है। यानी हम तो डूबेंगे सनम, और साथ तुम्हे भी ले डुबोयेगें।
अब देखना ये दिलचस्प है कि क्या ऐसे लोगो को उनकी पार्टी उन्हें मनवाने में पास होती है या फिर नापास। नामांकन वापसी के बाद ही ये पिक्चर साफ होगी।
